Yaad rakh Hum bhi isi Roo-e-zameen par ek din,
Tera ye Zulam kisi ko bhi Na Sehne denge,
Sirf Thodi si Madad Ghaib se mil jaane de,
Hum Tujhe Duniya ke Naqshe pe na rehne denge.
Ek Neewale Ke Liye Maine Jise Maar Diya,
Woh Parinda Bhi Kai Roz Ka Bhukha Nikla.
ये जो कलम दवात लिये कंधों पे फिरा करते हैं,
मर भी जाएं तो भी शायर नही होने वाले..
सारे हवा में घोल दी है नफरतें और हवास अहल ए सियासत ने
मगर न जाने क्यों पानी कुँए का आज तक मीठा निकलता है.
हाय वो दौरे ज़िन्दगी, जिसका लक़ब शबाब था,
कैसी लतीफ़ नींद थी, कैसा हसीं ख़्वाब था…..
यह तो ठीक है तेरी जफ़ा भी है एक अता मेरे वास्ते,
मेरी दुआओं की कसम तुझे, कभी मुस्कुरा के भी देख ले.
एक हालत पर न रहने पायी दिल की हसरते,
तुमने जब देखा नए अंदाज से देखा मुझे.
ख़ुद अपने आपको शादाब करना चाहता है,
ये कलम का फ़क़ीर आपको आदाब करना चाहता है !
ग़ज़ल और शायरी की सल्तनत पर आज भी क़ब्ज़ा हमारा है
इसलिए तो हम अपने नाम के आगे अभी राना लगाते हैं.
मेरी नेकियाँ गिनने की नौबत ही नहीं आएंगी,
मैंने जो माँ पे लिखा है वही काफ़ी होगा…